Monday, 22 September 2025

॥ भवान्यष्टकम्‌ ॥(हिन्दी भावानुवाद)


भगवान आद्य शंकराचार्य जी द्वारा रचित

॥ भवान्यष्टकम्‌ ॥(हिन्दी भावानुवाद)


न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥1॥

"महा भुजंग प्रयात सवैया"

न माता न दाता न पुत्री न धात्री,
न भ्राता न संगी पिता पुत्र दासा।
न विद्या न आजीविका वृत्ति मेरा,
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।१।।

रहूं लिप्त कामादि लोभादि में मैं, 
महाक्लेश से मां बड़ा ही डरा हूंI
पड़ा विश्व के सिंधु के बंधनों में,
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।२।।

भवानी नहीं जानता दान देना,
नहीं मंत्र स्तोत्र का ही पता है।
नहीं ध्यान पूजा नहीं न्यास जानूं,
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।३।।

नहीं जानता पुण्य तीर्थादि मुक्ती,
भवानी अकेले सहारा तुम्हीं हो।
सुरों का नहीं ज्ञान ना त्याग भक्ती,
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।४।।

दुराचार दुर्बुद्धि से युक्त हूं मां,
बुरी संगतों का महादास हूं मैं।
सदा क्लेश से युक्त वाणी उचारूं,
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।५।।

नहीं जानता ब्रम्ह या विष्णु शंभू,
नहीं सूर्य राकेश इंद्रादि को मैं।
भवानी सदा दास हूं आपका मैं,
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।६।।

बचा हे शरण्ये विवादादि से तूं ,
वनों पर्वतों आग पानी दुखों से।
सदा रक्षिणी शत्रु से त्राण देना , 
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।७।।

जरा जीर्ण रोगी महादीन गूंगा,
सदा ही सदा मातु मै बेसहारा।
क्लेशादिकों संकटों से घिरा मैं,
तुम्हीं मात्र हो मोक्ष मेरी भवानी।।८।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
16.1.2023, सेमरी पाटन दुर्ग

श्री भवानी अष्टकम  का  जाप करने के फायदे हिंदी में -

भगवान आद्य शंकराचार्य निर्गुण-निराकार अद्वैत परब्रह्म के उपासक थे। एक बार वे काशी आए तो वहां उन्हें अतिसार (दस्त) हो गया जिसकी वजह से वे अत्यन्त दुर्बल हो गए। अत्यन्त कृशकाय होकर वे एक स्थान पर बैठे थे। उन पर कृपा करने के लिए भगवती अन्नपूर्णा एक गोपी का वेष बनाकर दही का एक बहुत बड़ा पात्र लिए वहां आकर बैठ गयीं। कुछ देर बाद उस गोपी ने कहा-'स्वामीजी! मेरे इस घड़े को उठवा दीजिए।'


स्वामीजी ने कहा-'मां! मुझमें शक्ति नहीं है, मैं इसे उठवाने में असमर्थ हूँ।' मां ने कहा-'तुमने शक्ति की उपासना की होती, तब शक्ति आती। शक्ति की उपासना के बिना भला शक्ति कैसे आ सकती है?' यह सुनकर शंकराचार्यजी की आंखें खुल गयीं। उन्होंने शक्ति की उपासना के लिए अनेक स्तोत्रों की रचना की। भगवान शंकराचार्यजी द्वारा स्थापित चार पीठ हैं। चारों में ही चार शक्तिपीठ हैं।


भवान्यष्टक श्रीशंकराचार्यजी द्वारा रचित मां भवानी (शिवा, दुर्गा) का शरणागति स्तोत्र है। माँ भवानी शरणागतवत्सला होकर अपने भक्त को भोग, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती हैं। देवी की शरण में आए हुए मनुष्यों पर विपत्ति तो आती ही नहीं बल्कि वे शरण देने वाले हो जाते हैं।

Wednesday, 16 July 2025

गणेश वंदना(द्रुतविलंबित वर्णिक छन्द)शिवलला गणनायक आइये

गणेश वंदना

(द्रुतविलंबित वर्णिक छन्द)

ललल लालल लालल लालला


शिवलला गणनायक आइये l

दरस आकर नाथ दिखाइये ll

कर गजानन अंकुश साथ हो l

परसु पाश गणेश्वर हाथ हो ll

मुकुट शोभित सीस गजानना l

उदर दन्त त्रिपुण्ड लुभावना ll

सुरुचि मोदक भोग लगाइये l

शिव लला गणनायक आइये ll1ll


पुहुप रक्त सुगन्धित माल है l

श्रवण गात ललाम विशाल है ll

चरण सुन्दर दिव्य मनोहरा l

नयन आनंद से दिखता भरा ll

सदन रिद्धि सुसिद्धि बुलाइए l

शिवलला गणनायक आइये ll2ll


जनक आदिदेव महेश्वरा l

गृहहिमाचल तुंग दिगम्बरा।।

सहचरी परिवार समेत हों ll

सकल कष्ट गजानन दूर हो l

सुख अनेक सदा भरपूर हों ll

कुल समेत मुझे प्रभु तारिये l

शिव लला गणनायक आइये ll3ll


दरस आकर नाथ दिखाइए l


कवि मोहन श्रीवास्तव

10.07.2025

महुदा, झीट अमलेश्वर

दुर्ग छत्तीसगढ़

Tuesday, 24 June 2025

छंद:- चंचरीक (चर्चरी छन्द)“माता काली स्तुति “

छंद:- चंचरीक (चर्चरी छन्द)

“माता काली स्तुति “


कालिका कराल काल, जीभ है निकाल लाल, नैनों में अग्नि ज्वाल, असुरों को मारे l

कंठ धार मुंडमाल, हाथ में लिए मशाल , जोर जोर फाड़ गाल, अरि दल संहारे ll

योगिनी समान चाल, है त्रिपुण्ड दिव्य भाल,कटि में है व्याघ्र खाल, क्रोध से पुकारे l

पैंजन झनक ताल,हाथ में कटार ढाल, लाल लाल पुष्प माल, पापियों को जारे ll1ll


लाश यान पे सवार, जोर से करे प्रहार,सीस देह से उतार, दिखती विकराली l

दुष्ट धृष्ट मार मार, संतों को तार तार, भक्त हेतु है उदार,योगिनी कंकाली ll

देवि के हैं विखरे केश, कंत हैं सदा महेश, धारती प्रचण्ड वेश,रौद्र रूप काली l

मातु जीभ लपलपात, दाँत तिब्र कटकटात, कँठ धार दैत्य आँत,जय माता काली ll2ll


करती है रक्त पान, लेती है दैत्य प्राण, फिरती है वह मसान,तन भभूत धारी l

भूत प्रेत साथ साथ, धारी त्रिशूल हाथ,त्रिनेत्र धार माथ, शम्भु प्राण प्यारी ll

करती है अट्टहास, देख दुष्ट झुण्ड लास,मंद मंद जात हास, संत क्लेश हारी l

बार बार किलकिलात,शोणित से भीग गात,मुखड़ा है तम तमात, सीस चंद्र धारी ll3ll


कवि मोहन श्रीवास्तव

Thursday, 6 March 2025

"महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है"

छंद:- पञ्चचामर 

"महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है"


प्रयाग राज तीर्थराज तीर्थ में महान् है।

कलिंदपुत्रि गंग शारदे मिलें प्रमाण है।।

कपिश्वराय लेट के सभी को दर्श दे रहे।

समस्त पाप लोग के सुधांशु नीर में बहे।।

वटेषु वृक्ष आदि वृक्ष दिव्य दर्श दे रहे।

महात्म्य को ऋषी मुनी पुराण वेद हैं कहें।।

भारद्वाज की कुटी सदा ही विद्यमान है।

निषादराज राम मेल को कहे पुराण है।।

उतार भक्त केवटा विनम्र भाव ढंग से।

निषादराज भ्रात संग राम सीय गंग से।।

पुनीत पावनी धरा त्रिलोक में प्रसिद्ध है।

त्रिवेणि नीर सोम के समान दिव्य शुद्ध है।।

प्रयाग में निवास जो करें सदैव धन्य हैं।

महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है।।

अनेक दिव्य जीव तीर्थ में निवास हैं करें।

विभिन्न रूप धार के सदैव मोद में भरें।।

पवित्र कुम्भ दीर्घ कुम्भ बार बार है लगे।

त्रिवेणि में नहान से समस्त पाप हैं भगे।।

अनेक साधु सन्त देव नाग का जमावड़ा।

मनुष्य खेचरादि आदि दीन या धनी बड़ा।।

सनातनी वहां जुटें भुला सभी विभेद को।

न जाति पात ऊंच नीच छोट दीर्घ भेद हो।।

अनेक शंभु भक्त भांति भांति के वहां जुटें।

नमः शिवाय नाम जाप बार बार हैं रटें।।

प्रघोर ठंड में अनेक वस्त्रहीन ही रहें।

भभूत गात धूनिका रमाय वेद को कहें।।

अनेक सिद्ध साधु सन्त राम की कथा कहें।

सुभक्त ध्यानमग्न ज्ञान के प्रवाह में बहें।।

पुनीत माघ मास में त्रिवेणि स्नान को करें।

अनेक कल्पवाश लोग योग मोद में भरें।।

समस्त तीर्थ में सदैव वेदमन्त्र गूंजते।

विहंग के समान लोग यत्र तत्र कूजते।।

प्रयाग के महात्म्य का न हो सके बखान है।

प्रणाम बार बार है प्रणाम बार बार है।।

प्रणाम बार बार है प्रणाम बार बार है।।

कवि मोहन श्रीवास्तव 

२६.०३.२०१४

महुदा, झीट अम्लेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 














Monday, 13 May 2024

भोजपुरी (मोर संवरिया मोर बतिया........)

सुनत नाही हो सुनत नाही
मोर संवरिया मोर बतिया सुनत नाही.......२
सुनत नाही हो............

दिल की जब बतिया उनसे करीला..२
हथवा के जोड़ दुनउ बिनती करीला........२
कवनउ जतनिया...२ चलत नाही
मोर सवरिया मोर..........

होत सबेरवां घरवा से जइतन..२
आधि-आधि रतियां....२, घर नही अउतन...२
मोरि कदरिया......२ करत नाही..........
मोर सवरिया मोर..........

अब त जनम भर उनही कर रहबइ..........२
दिल मे त पियवा क मूरत बसइबइ.........२
कवनउ गलनिया.....२, करब नाही......२ 

मोर संवरिया मोर बतिया सुनत नाही.......२
सुनत नाही हो............२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
03-10-1999,sunday,1.30pm,
chandrapur,maharashtra.

Tuesday, 2 April 2024

हाय रे घोटालेबाज

"हाय रे घोटालेबाज"
हाय रे घोटालेबाज, दारू वारू के दलाल,
आखिर में पहुंच गया तू तो तिहाड़ में।
बड़ी बड़ी कर बात, देश से तू किया घात ,
भ्रष्टाचारी देशद्रोही अब जा तू भाड़ में।
मिटायेंगे भ्रष्टाचार, बोल बोल के गद्दार,
पर तूं भी जाके मिला, चोरों की कबाड़ में।
गड़बड़ झालावाला वाला , बन गया दारू वाला,
देश द्रोह करता था, नेता गिरी आड़ में।।

फट गया तेरा ढोल, खुल गई सारी पोल,
बच्चा बच्चा जान गया तेरे इस खेल को।
तेरे साथ मिले और, कई बड़े बड़े चोर,
तेरे आगे पीछे सब जा रहे हैं जेल को।।
तूं तो ना किसी का सगा, सब को है तूने ठगा ,
मुफतखोरी की दौड़ा रहा था तू रेल को।
सब लोग जान गए, तुझे पहचान गए,
तिल तिल तरसेगा अब तू तो बेल को ।।
मोहन श्रीवास्तव
02.04.2024, मंगलवार
महुदा झीट पाटन दुर्ग